वो हर इक लम्हा तो जैसे साल गुजरे
जेहनो-दिल से जब तेरा ख्याल गुजरे
तेरी यादों में जो कभी शाम हुआ करे
फिर आँखों से रात भर शलाल गुजरे
आईने में भी अपनी सूरत दिखी नहीं
मेरे साथ ऐसे भी बहुत कमाल गुजरे
मैं चराग हूँ पर हार मानूंगा नहीं यूँ ही
कह दो इस हवा से अपनी चाल गुजरे
उसके बाद तो किसी पे नज़रें नहीं रुकीं
वैसे नज़र से कई हूर-ओ-जमाल गुजरे
हर बार क्यूँ मैं ही उसको मनाने जाऊं
मैं रहूँ खामोश तो उसको मलाल गुजरे
दर्द के सफ़र में कब होगी नसीब मंजिल
''राज़'' के दिल में बस यही सवाल गुजरे