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रविवार, जुलाई 11, 2010

ग़ज़ल


जगती आँखों का ख्वाब ग़ज़ल 
देखो लगती कैसी बेताब ग़ज़ल 

उसको मैं क्या नाम दूँ आखिर
मुझसे कहती माहताब ग़ज़ल 

किसी शाम जब याद यूँ आती 
फिर होकर बहती आब ग़ज़ल 

किसको खोजूं किस से कह दूँ 
बस दर्द का मेरे हिजाब ग़ज़ल 

मौसम की रवायत सी दिखती 
शामो-सहर का आदाब ग़ज़ल 

जिनके यहाँ अल्फाज़ महकते 
उनकी खातिर है गुलाब ग़ज़ल 

जरा सी पी लेते तो बहके रहते 
"राज" की जामो-शराब ग़ज़ल