दिल की बज़्म से हंस कर निकला
दर्द अपना कुछ मुख़्तसर निकला
जिसे अपने अजीजों में रखा मैंने
खंज़र उसका ही पीठ पर निकला
शब् यादों की तीरगी में कट गयी
फिर माह क्या ता-सहर निकला
तू नहीं गर तो तेरा ख्याल ही सही
कोई तो अपना हमसफ़र निकला
कुछ ख्वाब, वीरानी और वहशत
यही सामान बस मेरे घर निकला
देखीं थीं जिसने औरों में खामियाँ
वो ''राज़'' खुद ही बे-बहर निकला