लोकप्रिय पोस्ट

मंगलवार, अगस्त 16, 2011

खूबसूरत लफ़्ज़ों का फ़कीर नहीं हूँ मैं...



सच है के ग़ालिब, जौक, मोमिन, मीर नहीं हूँ मैं 
हाँ, पर खूबसूरत लफ़्ज़ों का भी फ़कीर नहीं हूँ मैं

मेरे जज्बों की भी कद्र होगी तुम मेरे बाद देखना 
क्या हुआ, जो के, नीरज, राहत, बशीर नहीं हूँ मैं 

मेरे कहे पे तो सुलग उठता है ये ज़माना ही सारा 
क्या करूँ आदतन मजबूर जो हूँ, कबीर नहीं हूँ मैं 

बहुत नाजुक, बहुत मासूम है, अंदाजो-बयां मेरा 
छू कर देखो मोम हूँ, कोई दहकता तीर नहीं हूँ मैं 

माना की ग़ज़ल है तीखी ये और कड़वे हैं शेर मेरे 
पर अहसास मेरे भी दिल में हैं, बे-पीर नहीं हूँ मैं 

शनिवार, अगस्त 13, 2011

फिर से मोहब्बत के वो ज़माने आ जाएँ



फिर से मोहब्बत के वो ज़माने आ जाएँ 
गर कैस जैसे कुछ और दीवाने आ जाएँ 

कभी वो बे-हिजाब बाम पे चल क्या पड़े  
ये चाँद सितारे सब जश्न मनाने आ जाएँ 

कोई परिंदा छत पे भले चहके ना चहके 
पर जिसे चाहें वो किसी बहाने आ जाएँ 

गर हो फलक के अब्र से बूंदों के करिश्मे 
सहरा में भी फिर मौसम सुहाने आ जाएँ 

आँखों की तश्नगी को भी आराम हो नसीब 
याद जो उसकी, पलक छलकाने आ जाएँ 

शब्-ए-गम की इन्तेहाँ भी हो किसी रोज 
सुबहें खुशियों की जो मुस्कराने आ जाएँ 

बुधवार, अगस्त 03, 2011

पहले ज़ख्मों पर थोड़ा नमक लगा दीजिये



पहले ज़ख्मों पर थोड़ा नमक लगा दीजिये 
फिर जी भरकर आप मुझको दुआ दीजिये 

और कौन यहाँ काफिर है कौन है मुसलमाँ
कभी मिलें गर जो ये मुझे भी बता दीजिये 

मेरी तासीर आब जैसी है पता चल जाएगा 
बस इक बार खुद को मुझमे मिला दीजिये 

कभी जो आँखों में मेरी उसके ख्वाब मिले 
जो चोर की हो वो ही मुझको सज़ा दीजिये  

जिसे लग गया हो आजार-ए-इश्क यहाँ पे 
उसे फिर क्या दुआ दीजिये के दवा दीजिये 

मकता भी संभल जाएगा, खूब शेर जमेंगे  
फ़िक्र बहर की आप,ग़ज़ल से हटा दीजिये