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गुरुवार, मार्च 25, 2010

तन्हाई में......


अब तो आँखों का रतजगा होता है तन्हाई में 
ना सांस चलती है ना दिल सोता है तन्हाई में 

बिछड़ कर वो भी तो कहीं खुश नहीं रह पाया 
बेसबब याद कर मुझे बहुत रोता है तन्हाई में 

किसी आईने सी जब ये रात बिखर जाती है 
चुन-2 के दिल ये जज्बे संजोता है तन्हाई में 

बादे-सबा जब भी उसकी खुशबू सी ले आती है 
पलकों का कोहसार मुझे भिगोता है तन्हाई में 

दर्द जब कभी बे-इन्तेहाँ ही बढ़ जाता है मेरा 
लहू-ए-चश्म ही हर जख्म धोता है तन्हाई में 

मुझमे मौसमों सी बदलती सूरते मिलती हैं 
जाने कैसी-2 फसलें दिल बोता है तन्हाई में