कटी पतंग सी अब तो मेरी ज़ात है
बनते-बनते मेरी हर बिगड़ी बात है
जो ताउम्र किस्मत के भरोसे पे रहा
बिसाते-वक़्त में तय उसकी मात है
मैं उसके लिए बस इक खिलौना था
वो क्या जाने के वो मेरी कायनात है
खुदा ने कब फर्क रखा था इंसां में
ये तो हम इंसानों की करामात है
गुजरेगी कैसे अब सोचते हैं "राज़"
जिन्दगी तनहा सफ़र की रात है