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गुरुवार, जुलाई 21, 2011

"सुबह के ५ बजे और याद उनकी......."


07/07/2011 सुबह ५ बजे जब रात ढली नहीं थी और सहर चली नहीं थी...
यूँ ही जेहन के दरिया में किसी का ख्याल मचल गया.... 
लफ़्ज़ों की कश्ती को सफहों के साहिल पे उतार लाया था.....
वही आपकी पेश-इ-खिदमत है..... 
इसे पढ़ते समय वक़्त का ख्याल जरुर रखियेगा.. "सुबह के ५ बजे और याद उनकी......."




शब् की सुर्खी कुछ उतर जाए तो चली जाना 
खुशबु फूलों से यूँ बिखर जाए तो चली जाना

अभी भी आसमाँ पे चांदनी छिटकी है जरा सी 
सहर लेकर के इसे जो घर जाए तो चली जाना

देखो तो मौसम भी गुलाबी हुआ नहीं है अभी 
रंगत कुछ इसकी निखर जाए तो चली जाना

अभी तो ये लफ्ज़ अंगड़ाइयां ही ले रहे हैं मेरे 
ग़ज़ल इनसे कोई संवर जाए तो चली जाना

नहीं जाते ....



माँ की आँखों से फिर आसूं टाले नहीं जाते 
जब बच्चों के गले में दो निवाले नहीं जाते 

ताउम्र पाल-पोस कर जिनको, बड़ा किया 
बच्चों से वही बूढ़े माँ-बाप पाले नहीं जाते 

ये तो जिगर है अपना, जो रौशन हैं वो भी 
जुगुनुओं के घर तो कोई उजाले नहीं जाते 

अब के सियासत में यहाँ पे ग़द्दार बहुत हैं 
परचम वतन के जिनसे संभाले नहीं जाते 

बुलंदी अक्सर हौसलों से मिला करती है
समन्दर में यूँ ही मोती खंगाले नहीं जाते 

इश्क में खुद को परवाना कहते हैं वो पर 
वफ़ा में कभी शम्मा के हवाले नहीं जाते

और "राज" जैसे भी हैं ठीक ही हैं यहाँ तो 
क्या हुआ जो मस्जिद या शिवाले नहीं जाते

रविवार, जुलाई 17, 2011

शाम ढलती है जब कहीं पर बवाल रखती है


शाम ढलती है जब कहीं पर बवाल रखती है 
चेहरे पे वो अपने तो रंग सुर्ख लाल रखती है 

उतर जाए है शब् की थकान उसकी आमद से 
सहर अपने अंदर कुछ ऐसा कमाल रखती है 

गम मिलता है तो लिपट जाता है खुद ही खुद 
ख़ुशी आये है जब तो कितने सवाल रखती है 

क्या कह डालूं वफादारी की बात उसकी यारों 
वो पगली आज भी ख़त मेरे संभाल रखती है 

अपनी दुआओं में अब भी नाम लेती है मेरा 
खुद से भी ज्यादा वो तो मेरा ख्याल रखती है 

अपने हालातों को बयां किसी से करती नहीं 
हंसी की ओट में छुपाकर के शलाल रखती है 

लफ़्ज़ों को करीने से यूँ ही नहीं सजाते "राज़" 
ग़ज़ल ही बज़्म में मेरे दिल का हाल रखती है 

तेरे बिना.....


ऐसा नहीं के बहुत कुछ नहीं बदला तेरे बिना 
पर हयात का कारवां गुजर तो रहा तेरे बिना 

सुकूँ होता है दिन में, नींद भी आती है रात को
कट जाती है जिन्दगी कतरा-कतरा तेरे बिना  

अब्र याद का आये भी मगर बरसात नहीं होती 
खामोश ही रहता है आँखों का दरिया तेरे बिना 

और अब ख्यालों में इंतज़ार की शाम नहीं है  
वक़्त गुजरा वो भी, ये भी गुजरेगा तेरे बिना 

रस्मे-उल्फत निभाई पर तुझे पा ना सके हम 
इश्क से रहेगा उमर भर ये शिकवा तेरे बिना 



शुक्रवार, जुलाई 01, 2011

"आरज़ू" चाँद पाने की.....



दर्द का ये मंज़र भी इक रोज ठहर जाएगा 
मुसाफिर ही तो है कब तक किधर जाएगा 

अभी इन्हें छोड़ भी दो यूँ ही खुला रहने दो 
वक़्त बदलेगा सब ज़ख्मों को भर जाएगा 

रोज-ए-क़यामत जो कभी यूँ फैसला होगा 
इलज़ाम इश्क का दोनों के ही सर जाएगा 

और आज जो उकताया फिरे मुझसे बहुत 
कल हिज्र में मुझे ढूंढते इधर उधर जाएगा 

बहुत उड़ता है परिंदा आसमाँ में दूर तलक
थक गया जब कहीं तो लौट के घर जाएगा 

"आरज़ू" चाँद पाने की यूँ रख लो तुम "राज़" 
के हुआ कभी तो कोई सितारा उतर जाएगा