शब् के जख्मों को कुछ सहलाना चाहिए
जो शाम बिखरे तो चराग जलाना चाहिए
नाम इश्क की जमात में लिखवा दिया है
फिर मौसमे-दर्द में भी मुस्कराना चाहिए
थक जाओ कभी जब हवा नापते-नापते
अपने घर तुम्हे फिर लौट जाना चाहिए
और खुदा--खुदा कहने से कुछ नहीं होता
सच्ची इबादत हो तो सर झुकाना चाहिए
छोड़ दो ये नफे-नुकसान की बातें करना
इस दिल को तो यूँ ही आजमाना चाहिए
सोचती होगी वो कासिद को फिर देखके
इस बार ख़त उनका जरुर आना चाहिए
चाँद तारों तक तो अपनी पहुँच नहीं होती
उनकी ही गली का चक्कर लगाना चाहिए
जो तुम्हारी जफा के बदले वफ़ा किया करे
"राज"उनको पलकों पे ही बिठाना चाहिए