लोकप्रिय पोस्ट

बुधवार, जून 23, 2010

शब् के जख्मों को कुछ सहलाना चाहिए


शब् के जख्मों को कुछ सहलाना चाहिए 
जो शाम बिखरे तो चराग जलाना चाहिए 

नाम इश्क की जमात में लिखवा दिया है 
फिर मौसमे-दर्द में भी मुस्कराना चाहिए 

थक जाओ कभी जब हवा नापते-नापते 
अपने घर तुम्हे फिर लौट जाना चाहिए 

और खुदा--खुदा कहने से कुछ नहीं होता 
सच्ची इबादत हो तो सर झुकाना चाहिए 

छोड़ दो ये नफे-नुकसान की बातें करना 
इस दिल को तो यूँ ही आजमाना चाहिए

सोचती होगी वो कासिद को फिर देखके 
इस बार ख़त उनका जरुर आना चाहिए 

चाँद तारों तक तो अपनी पहुँच नहीं होती 
उनकी ही गली का चक्कर लगाना चाहिए 

जो तुम्हारी जफा के बदले वफ़ा किया करे 
"राज"उनको पलकों पे ही बिठाना चाहिए

शाम तन्हा सहर तन्हा


शाम तन्हा सहर तन्हा
ख्वाबों का सफ़र तन्हा

शाखों पे पत्ते पीले पीले 
गुल तन्हा शजर तन्हा

सलामो दुआ होती नहीं 
कैसा सारा शहर तन्हा

जाऊं रखूं उम्मीद क्या 
मिलेगा जब घर तन्हा 

परिंदे अब किसे दें सदा
रिहाई ढूंढे नजर तन्हा