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बुधवार, सितंबर 23, 2009

तुम्हे छूकर गुलाब कर दूंगा


तुम्हे छूकर गुलाब कर दूंगा
पूरा हर एक ख्वाब कर दूंगा

तुम हिज्र में शिकवे लिख लेना
मैं वस्ल में सब हिसाब कर दूंगा

तुमको शौक है ना माह होने का
अमावस में ये भी खिताब कर दूंगा

जब भी ग़ज़ल में तारे लिखूंगा
तुमको उसमे माहताब कर दूंगा

नजर कहीं न मेरी ही लग जाए
अपने आँखों को नकाब कर दूंगा

खुशगवार लम्हों को तुम पढ़ा करना
जीस्त को मुक़म्मल किताब कर दूंगा

अपने जख्मो की यूँ दास्ताँ कह देना
मैं मरहम कोई लाजवाब कर दूंगा