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शुक्रवार, मई 29, 2009

मैं सहर हूँ




उसकी खुशबू से तरबतर हूँ
एक महकता हुआ शजर हूँ

उसके आरिज पे खिलता हूँ
नम-शबनम सा रात भर हूँ

सारे रिश्तों को पहचानता हूँ
मैं मोहब्बत से आबाद घर हूँ

हालात कुछ भी हो जीता हूँ
रखता फौलाद का जिगर हूँ

एक रोज वो पढ़ेगी देखना
सुनी सुनाई ताजा खबर हूँ

वो शब् मुझसे अब डरती है
मिटा दूंगा उसको मैं सहर हूँ.