लोकप्रिय पोस्ट

रविवार, जनवरी 17, 2010

तेरी ख़ुशी का देख मैं कैसे ख्याल रखता हूँ


तेरी ख़ुशी का देख मैं कैसे ख्याल रखता हूँ
लबों की हंसी में छिपा के शलाल रखता हूँ

क़यामत तक शायद मुझे सुकूं ना मिलेगा
रुते-हिज्र में जो, उम्मीदे-विसाल रखता हूँ

मेरे रकीबों से उसकी कुर्बतें बढ़ तो गयीं हैं
पर कहाँ मैं इस नसीब पे मलाल रखता हूँ

चैन-ओ-सुकूं बहुत मिल जाता उस दम में
जब के मय को अपना हमख्याल रखता हूँ

मेरे मासूम कातिल पे कोई तोहमत ना लगे
इश्क का हर इल्जाम खुद पे डाल रखता हूँ

मेरी ग़ज़लों में कमियां कब तक निकालोगे
गौर करो, शेरों में कुछ तो कमाल रखता हूँ

मुझे नहीं तो कम से कम तुम्हे प्यार मिले
अपने जेहन में यही तमन्ना पाल रखता हूँ

जमाना हुआ ख़ामोशी के आगोश में रहा हूँ
फिर क्यूँ कहते हो चेहरे पे सवाल रखता हूँ