दरिया जब समंदर में उतर गया होगा
वो अपने वजूद से ही बिखर गया होगा
ये शब् के पहलू में नमी कैसी आ गयी
अश्क ले कर कोई ता-सहर गया होगा
मानूस नहीं ये दिल यहाँ यूँ ही हुआ है
वादा आने का कोई तो कर गया होगा
दिले-गुलशन में अब गुंचे नहीं खिलते
उनकी याद का तूफां गुजर गया होगा
खामियां बताने में ये ज़माना कम नहीं
इल्जाम तो माह के भी सर गया होगा
अपनी आँखों को ही जलाया होगा ''राज़''
चराग खुशियों का बुझ अगर गया होगा