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शनिवार, मार्च 24, 2012

आफताब छूने चले हो जल जाओगे....



मोम ही तो हो तुम पिघल जाओगे 
आफताब छूने चले हो जल जाओगे 

मैं तुमको जरा सा सोच भर लूँ 
तुम मेरे लफ़्ज़ों में ढल जाओगे 

दिल के घर में इक मेहमाँ ही तो थे 
पता था आज नहीं तो कल जाओगे 

तुम पर यकीं कर तो लूँ पर कैसे 
मौसम ही हो पक्का बदल जाओगे 

मरासिम हवाओं से जोड़ लो तो जरा 
चरागों फिर तुम भी संभल जाओगे 

ये मेरे गम हैं जो जवाब देते ही नहीं  
मैं रोज़ पूछता हूँ किस पल जाओगे 

सोमवार, मार्च 19, 2012

चाँद किसी को देखने के बहाने निकलता है



रात को थोड़े ही रौशन बनाने निकलता है 
चाँद किसी को देखने के बहाने निकलता है

जब सोचता हूँ उसकी याद मिटा दूँ जेहन से 
ख़त इक पुराना फिर सिरहाने निकलता है 

कभी आँखों से बहा, कभी सफ्हे पे उतरा है 
दर्द भी बदल बदल के ठिकाने निकलता है 

कौन है यहाँ पर जो रुदाद-ए-गम सुने मेरी  
हर कोई अपनी कहानी सुनाने निकलता है 

क़ज़ा के पहलू में जब रूठ जाती है जिंदगी 
फिर कहाँ कोई उसको मनाने निकलता है 

माना के जुबाँ तल्ख़ है ज्यादा ही "राज" की 
पर हर लफ्ज़ कुछ नया बताने निकलता है 

शनिवार, मार्च 17, 2012

रूठ कर जिंदगी और क्या ले जायेगी


रूठ कर जिंदगी और क्या ले जायेगी 
बस मेरे ये जिस्म-ओ-जाँ ले जायेगी 

चरागों तुम जरा खामोश जला करना 
अदा इक-इक तुम्हारी हवा ले जायेगी 

हमारे बाद ही तो तुम हमको तरसोगे 
जब ख़ामोशी हमारी सदा ले जायेगी 

हयात के परदे गिर जायेंगे उस रोज़ 
क़ज़ा जिस दिन हमे छुपा ले जायेगी 

बुधवार, मार्च 07, 2012

हम बस जिन्दगी के गम में उलझे रहे



कभी जियादा कभी कम में उलझे रहे 
हम बस जिन्दगी के गम में उलझे रहे   

दौरे--बहाराँ में भी नसीब सुकूँ ना हुआ 
जो उनकी याद के मौसम में उलझे रहे 

बस तकरार का सिलसिला चलता रहा 
के हम उनमे और वो हम में उलझे रहे

टूट कर इक आईने सी बिखर गयी रात 
मेरे ख्वाब तो अश्क-पैहम में उलझे रहे 

जो तालीम लेकर के ग़ज़लख्वाँ बने थे 
उम्र भर बहर के पेचो ख़म में उलझे रहे 

शनिवार, मार्च 03, 2012

ग़ज़ल मे......



लिखना है अब मुझे अपना हाल ग़ज़ल में
होता है, तो होता रहे फिर बवाल ग़ज़ल में

ना तो हुस्न की बातें,  ना ज़माल ग़ज़ल में 
करना है बस खुद को ही मिसाल ग़ज़ल में

तुम्हे तो लगते हैं, महज़ अल्फाज़ चंद ये 
और हमने रखा है दिल निकाल ग़ज़ल में

ज़ज्ब कहते हैं बयां हमको ठीक से करना 
बहर कहती है मुझको भी संभाल ग़ज़ल में

गिनवा देते हैं नुक्स यहाँ उस्ताद बहुत से
पर कहते नहीं कर दिया कमाल ग़ज़ल में

मौसम के मिज़ाज़ों का होता है जिक्र भी 
औ करते हैं बहारों की देखभाल ग़ज़ल में

समझेगा कौन यहाँ जो लिखा है ये "राज़" 
के करते रहिये बस यही सवाल ग़ज़ल में