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गुरुवार, अक्तूबर 29, 2009

दर्द का मौसम भी एक रोज गुजर जाएगा


दर्द का मौसम भी एक रोज गुजर जाएगा
तेरे आने से जर्रा जर्रा तक निखर जाएगा

जब मेरी हसरतें नाकाम सदा सी लौटेंगी
जहन-ओ-दिल से ये खुदा का डर जाएगा

मुंतजिर कितना था ये दिल सहर के लिए
शब् भर जगा भी था, पर अब घर जाएगा

और तूफां कभी कोई ताउम्र नहीं टिकता
हौसलें गर हैं तो हर दरिया उतर जाएगा

वस्ल की रात को दोनों लिपट के रोयेंगे
समां आलम में ये फिर रात भर जाएगा

आंसुओं की फसलें अब हम उगाते नहीं
इस सहरा में भी मुस्काता शजर जाएगा

सोमवार, अक्तूबर 19, 2009

बज्म -ऐ- दिल अब उसके नाम से चलती है


ये मेरी धड़कन बहुत एहतराम से चलती है
बज्म -ऐ- दिल अब उसके नाम से चलती है

वो आयेंगे मेरी आगोश में कौन सी शब् को
यही बात तो अब हर इक शाम से चलती है

फलक पे माह भी अब्र के साए में मिलता है
चौदहवीं की रात, जब वो बाम से चलती है

निगाहें साकी को वाइजों, इल्जाम ना देना
मयकशों की जिन्दगी तो जाम से चलती है

वो पूछ लेता है जब, बीमारों का हाल यूँ ही
सच है के ये नब्ज फिर आराम से चलती है

मोहब्बत के सिवा और अब फ़साने नहीं हैं
अपनी हर ग़ज़ल इसी कलाम से चलती है

अपने हमखारों की तुम खैर खबर लेते रहो
उम्र सारी ये 'राज' दुआ सलाम से चलती है

रविवार, अक्तूबर 18, 2009

अब ये आहें कब मेरी असर लाती हैं



अब ये आहें कब मेरी असर लाती हैं
दिल से निकलती हैं, बिखर जाती हैं

आप मर भी जाओ, अपनी बला से
वो मय्यत में भी बन-संवर आती हैं

हमे समझाती है निगाहें वाइज जो
कभी मैकदे पे वो भी ठहर जाती हैं

नामाबार को देखूं तो अब करूँ क्या
ख़त में वो इन्कार ही भिजवाती हैं

नजरों को भी कुछ काम तो चाहिए
एक से हटे तो दूजे पे ठहर जाती हैं

रविवार, अक्तूबर 11, 2009

काफिरों के हक में भी, एक दुआ रखना



काफिरों के हक में भी, एक दुआ रखना
तुम जब भी अपने जेहन में खुदा रखना

तेरा अक्स जो तुझसे रूबरू रखा करे यूँ
मेरे जैसा ही तू कोई फिर आईना रखना

मौसम कितना भी गमजदा क्यूँ ना मिले
बहारें लौटेंगी यही कायम हौसला रखना

शब् भर सहर के लिए मुन्तजिर ना होना
अपने पहलू में छुपा के, बादे-सबा रखना

सफ़र लम्बा बहुत है मंजिल आसाँ नहीं है
हो सके तो साथ अपने एक कारवाँ रखना

कौन सितम भी किसी पे, ताउम्र करता है
उसकी जफ़ाओं पे भी तू वफ़ा-वफ़ा रखना

बड़ा मासूम है जमाने की रस्में नहीं जाने
याद कभी तू ना उसकी कोई खता रखना

ये इश्क का मसला है, बहुत नाजुक सा है
मिलने जुलने में तुम जरा फ़ासला रखना

कत्ल करे भी तो उस से सवाल ना करना
नाम उसकी ये भी "राज" एक अदा रखना

गुरुवार, अक्तूबर 08, 2009

मेरी जानिब से जब भी बहार गुजरी है



मेरी जानिब से जब भी बहार गुजरी है
कर के दिल को बड़ा, बेकरार गुजरी है

वो हंस के रूबरू, हुआ जो कभी गैर से
के ये जिन्दगी फिर तार-तार गुजरी है

ना जाने क्यूँ घर में इक सन्नाटा सा है
शाम-ओ-सहर यूँ तो हजार बार गुजरी है

उसपे तोहमत ना लगे, इसलिए चुप हूँ
पर लबों पे वो दास्ताँ बेशुमार गुजरी है

शायद वो संग पिघल जाएगा अश्कों से
आँख नम करके यही इंतजार गुजरी है

उसने जफा करी है, जिस दम "राज" से
उम्र सारी फिर सबपे बे-ऐतबार गुजरी है

मंगलवार, अक्तूबर 06, 2009

वो जो महफ़िल में हमसे कुछ परे बैठे हैं



वो जो महफ़िल में हमसे कुछ परे बैठे हैं
हम तो उनसे मिलने की आस धरे बैठे हैं

यूँ तो कभी होते नहीं वो हमख्याल हमसे
एक हम हैं जो जमाने से उनपे मरे बैठे हैं

हम तो शुमार करते हैं अजीजों में उनको
ना जाने क्यूँ वो हमसे अदावत करे बैठे हैं

के शायद किस्मत ही तंग है कुछ अपनी
सिवा हमारे ही यहाँ सब उनके वरे बैठे हैं

कभी तो होगा उनका रुख अपनी जानिब
यही इक ख्वाब"राज"आँखों में भरे बैठे हैं

गुरुवार, अक्तूबर 01, 2009

कुछ मौसम के फ़साने की बात करो



कुछ मौसम के फ़साने की बात करो
कुछ अपने दिल दीवाने की बात करो

इश्क की बातें तो यूँ सब किया करे हैं
कुछ तुम अलग ज़माने की बात करो

हर एक इल्जाम सर मेरे कर के तुम
चुपके से निकल जाने की बात करो

गर सदा नाकाम लौटे उस दर से तो
काफिरों से हाथ उठाने की बात करो

मजबूर हालात हों, कोई साथ ना दे
कुछ गैरों से भी निभाने की बात करो

सन्नाटा गली के मोड़ तक फैलने लगे
तुम घर में चराग जलाने की बात करो

'हीरों' ने हमे कभी काबिल नहीं समझा
"राज" अब संग आजमाने की बात करो