वो था तो ये घर, घर जैसा था
वरना दश्त-ए-सफ़र जैसा था
तारीकियों का मौसम आज है
कभी चाँद हमसफ़र जैसा था
हवा को हाथों में समेट लेना
बचपन में तो हुनर जैसा था
नींद से जान के ना उठना वो
ख्वाब टूटने का डर जैसा था
मेरी वफाओं पे जफा उनकी
कुछ इनायते-नजर जैसा था
पत्ते जुदाई मांग बैठे जिसके
मैं तो बस उस शजर जैसा था