राहें तो मिल गयीं मगर, रहबर नहीं मिला
ईंटों से बना मकाँ पर कभी घर नहीं मिला
मेरे लबों की मुस्कान से ये गुमाँ बना रहा
आँखों में मेरी किसी को सागर नहीं मिला
सहरा सहरा जाने क्यूँ भटका किये थे हम
जिसकी तलाश थी वो उम्र भर नहीं मिला
जाने कैसी आहट कानों में आती-जाती रही
चौखट पे जो देखा तो कोई बाहर नहीं मिला
अश्कों से जाने कैसी अपनी कुर्बत हो गयी
खुशियों का फिर कभी भी मंजर नहीं मिला