बेनूर हर आलम तेरे बगैर
बेबस सा मौसम तेरे बगैर
हकीकत क्या फ़साना क्या
ना ख़ुशी ना गम तेरे बगैर
चमन में ना रंगों-बू कोई
गुल ना शबनम तेरे बगैर
अब हर शय में शक्ल तेरी
कैसा हुआ भरम तेरे बगैर
क्या ग़ज़ल क्या नज़्म कहें
ना लफ़्ज़ों में दम तेरे बगैर
रुते-हिज्र में तो रोया किये
सुबहो-शाम हम तेरे बगैर
अब तमन्ना क्या और करें
बची जिंदगी कम तेरे बगैर