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रविवार, जनवरी 09, 2011

रात भर........


ख्यालों में आपका आना जाना रात भर  
फिर चश्मे--तर का मुस्कुराना रात भर

हर इक आहट पे है आपकी आमद लगे
मेरा दरवाजे तक नज़रें उठाना रात भर 

आपके पैरहन को छूके जब चली ये सबा 
हरसू खुला जैसे कोई मयखाना रात भर 

हवा, शजर, पत्ते, घटाएं, बेकरार थे सब 
इक मैं ही न था यहाँ पे दीवाना रात भर 

के बज़्म-ए-तन्हाई में चली याद आपकी 
बना लफ्ज़-लफ्ज़ पर अफसाना रात भर 

हद-ए-इंतज़ार में ये चराग भी बेसुध था 
जारी रहा उसका भी लडखडाना रात भर 

अभी तो गज़र का यहाँ पहला ही पहर है 
हुआ खुद को यूँ ''राज़''बहलाना रात भर