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गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

अब तो हर घड़ी बस उसके ख़याल आते हैं




अब तो हर घड़ी बस उसके ख़याल आते हैं 
दर्द उसे हो तो आँखों में मेरी शलाल आते हैं 

वो याद कर-2 के मेरी हिचकियाँ बढाता है 
करने कुछ उसको, ऐसे भी कमाल आते हैं 

जबसे अक्स उसका इस दिल में उतर गया 
कहाँ पसंद अब हमे हूरों के जमाल आते हैं 

शब् भर ख्वाबों में वो दीदार क्या देने लगा 
इब्तिदा-ऐ-सहर दो घड़ी और टाल आते हैं 

और करके वादा ना आना होगी अदा उसकी 
हम तो इंतजार में कई शामें निकाल आते हैं 

बज्म-ऐ-हुस्न में यूँ तो चेहरे बहुत मिलते हैं 
इन आँखों को नजर वो ही फिलहाल आते हैं 

उसके आने की खबर से पलकें नहीं झपकती 
जाने कैसे कैसे 'राज' खुद को संभाल आते हैं

मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

तेरे बगैर भी जिंदगी चलने लगी है


रात आ गयी ये शाम ढलने लगी है 
तेरे बगैर भी जिंदगी चलने लगी है 

जब से अश्के--बज्म सजाई है मैंने 
तन्हाई भी घर से निकलने लगी है 

तेरी यादों के साए ही काफी हैं यहाँ 
उनसे ही शाम अब बहलने लगी है 

लौट के ना देखना अब मेरी जानिब  
तबियत जरा जरा संभलने लगी है 

वो और वक़्त था के तेरी दरकार थी 
मेरी आदत भी अब बदलने लगी है 

ऐसी तीरगी नहीं जो मिट ना सके 
आँख भी चराग सी जलने लगी है 

शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

भला क्यूँ शराफत कम हो गयी है




क्या मेरी मोहब्बत कम हो गयी है 
या फिर कुछ शिद्दत कम हो गयी है 

खुदा तो अब भी वही रह गया यहाँ 
क्यूँ मगर इबादत कम हो गयी है 

पहले तो रोज मिला करते थे हम 
कभी-2 की आदत कम हो गयी है 

रस्मे निभाने के बहाने हैं तुम्हारे 
सच में क्या फुर्सत कम हो गयी है 

लुत्फ़ था बेवजह झगड़ने में भी 
क्यूँ वो शिकायत कम हो गयी है 

पशेमानी उनकी अच्छी नहीं है 
लगे जैसे अदावत कम हो गयी है 

अब तो लबों पे बद्दुआ नहीं लाते 
भला क्यूँ शराफत कम हो गयी है

गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010

अब दिल मेरा क्यूँ ये पत्थर नहीं होता



अब दिल मेरा क्यूँ ये पत्थर नहीं होता 
मर्ज-ऐ-मुहब्बत का चारागर नहीं होता 

छोड़ देते हैं जो किसी के वास्ते दुनिया
उनके लिए फिर जहाँ में घर नहीं होता 

दिल लगाना तोड़ देना खेल हैं उनका
हममें ऐसा कोई क्यूँ हुनर नहीं होता 

नहीं सीखा है जिसने झुकना ज़माने में 
उस शाख-ऐ-शजर पे समर नहीं होता 

जो ना बहे किसी के दर्द में,अहसास में 
वो अश्क है पानी कभी गुहर नहीं होता 

वो मेरी हर आह को समझ गया होता 
रकीब का सिखाया कुछ गर नहीं होता 

नसीब अपने भी कब के सवंर गए होते 
जुल्फ में उलझा, जो मुकद्दर नहीं होता 

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

इन तन्हा आँखों में इक इन्तजार रहता है



इन तन्हा आँखों में इक इन्तजार रहता है
उसके लिए दिल अब भी बेक़रार रहता है 

और हर आहट पे झरोखे तक आ जाती हूँ 
वो आएगा ये गुमाँ मुझे बार-बार रहता है 

यूँ तो सबसे हंस बोल लिया करती हूँ मैं 
दिल में मगर जाने कैसा आजार रहता है 

तन्हाईयाँ यूँ मेरी अब चुभती तो बहुत हैं 
पर उम्मीदों का कायम गुलजार रहता है 

"राज" दिखने में संग पर मासूम भी तो है 
क्यूँ कहते हो उसमे के गुनहगार रहता है 

शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

राहें तो मिल गयीं मगर, रहबर नहीं मिला



राहें तो मिल गयीं मगर, रहबर नहीं मिला 
ईंटों से बना मकाँ पर कभी घर नहीं मिला 

मेरे लबों की मुस्कान से ये गुमाँ बना रहा 
आँखों में मेरी किसी को सागर नहीं मिला

सहरा सहरा जाने क्यूँ भटका किये थे हम 
जिसकी तलाश थी वो उम्र भर नहीं मिला 

जाने कैसी आहट कानों में आती-जाती रही 
चौखट पे जो देखा तो कोई बाहर नहीं मिला 

अश्कों से जाने कैसी अपनी कुर्बत हो गयी 
खुशियों का फिर कभी भी मंजर नहीं मिला