अब दिल मेरा क्यूँ ये पत्थर नहीं होता
मर्ज-ऐ-मुहब्बत का चारागर नहीं होता
छोड़ देते हैं जो किसी के वास्ते दुनिया
उनके लिए फिर जहाँ में घर नहीं होता
दिल लगाना तोड़ देना खेल हैं उनका
हममें ऐसा कोई क्यूँ हुनर नहीं होता
नहीं सीखा है जिसने झुकना ज़माने में
उस शाख-ऐ-शजर पे समर नहीं होता
जो ना बहे किसी के दर्द में,अहसास में
वो अश्क है पानी कभी गुहर नहीं होता
वो मेरी हर आह को समझ गया होता
रकीब का सिखाया कुछ गर नहीं होता
नसीब अपने भी कब के सवंर गए होते
जुल्फ में उलझा, जो मुकद्दर नहीं होता
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