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शनिवार, फ़रवरी 09, 2013

मेरी पीठ पर दोस्तों के खंजर चले




जो भी यहाँ सच की रह-गुजर चले
उसके घर पे यारों फिर पत्थर चले

मैं दुश्मनों से तो वाकिफ था मगर
मेरी पीठ पर दोस्तों के खंजर चले

लोगो ने उसको हँसता हुआ देखा है
कौन जाने क्या दिल के अंदर चले

लफ्ज़ ये गर तुम्हे चुभे तो क्या करें
हमारी शायरी में तो यही तेवर चले

तुम्हारी बातों से ही जान में जान है
याद आओ तो साँसों का लश्कर चले

मैं उसूलों पे कायम था तो पीछे रहा
आगे बे-उसूल वाले ही अक्सर चले

जोर अपने बाजुओं में रखना "राज़"
दूर तलक साथ कभी न मुकद्दर चले

बुधवार, फ़रवरी 06, 2013

तू आये या तो तेरा ख्वाब आये




जोर बाजुओं में बे-हिसाब आये 
तोड़कर पत्थर फिर आब आये 

फलक को नाप आये कदमो से 
हम जहाँ पहुंचे कामयाब आये 

एक मुद्दत से वीरान है ये आँखे   
तू आये या तो तेरा ख्वाब आये 

सूरत-ए-चाँद और भी हसीं लगे
जुल्फ बन के जब हिजाब आये 

सवाल तश्नगी का जब कभी उठे 
जवाब इतना के बस शराब आये 

वो ख्वाहिशें रोज ख़त लिखती हैं  
कभी हो के ख़ुशी का जवाब आये 

बात कहना फनकारी नहीं "राज़"
बात तब है जब इन्किलाब आये