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सोमवार, अप्रैल 11, 2011

इक गुनाह सा कर गया कोई



के इक गुनाह सा कर गया कोई
इस दिल से जो उतर गया कोई

उसे बस जाने की जिद पड़ी थी
क्या पता कहीं पे मर गया कोई

हवा ये बहकी बहकी फिरे देखो
शायद यहाँ से गुजर गया कोई

चांदनी शब् भर रोती रही यहाँ
इलज़ाम उसके सर गया कोई

खुद को ढूंढ़ते ये कहाँ आ गया
लौट कर जो ना घर गया कोई

उस गली के चक्कर नहीं लगते
शायद "राज़" सुधर गया कोई