के इक गुनाह सा कर गया कोई
इस दिल से जो उतर गया कोई
उसे बस जाने की जिद पड़ी थी
क्या पता कहीं पे मर गया कोई
हवा ये बहकी बहकी फिरे देखो
शायद यहाँ से गुजर गया कोई
चांदनी शब् भर रोती रही यहाँ
इलज़ाम उसके सर गया कोई
खुद को ढूंढ़ते ये कहाँ आ गया
लौट कर जो ना घर गया कोई
उस गली के चक्कर नहीं लगते
शायद "राज़" सुधर गया कोई