मेरा हो चला अब दुश्मन उनका शहर भी
साकी बगैर लगता है ये पैमाना जहर भी
उनके आने का वादा, बस वादा ही रहा है
गुजरी हैं कई शामे मेरी मुंतजिर ठहर भी
बिस्मिल नहीं होती हैं ये शब् के खौफ से
देखी है इन आँखों ने क़यामत की सहर भी
हिज्र के मौसम में मेरे ख्वाब क्या बिछड़े
आता नजर पलकों पे रतजगों का कहर भी
कुछ लफ़्ज़ों का अफसूँ, हल्की सी बंदिश
मिल जाती मेरी ग़ज़ल में, थोड़ी बहर भी
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अफसूँ---Magic