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बुधवार, जुलाई 08, 2009

रात भर मेरी ग़ज़ल कोई गुनगुनाया करता है




रात भर मेरी ग़ज़ल कोई गुनगुनाया करता है
मेरे ख्वाबों में यूँ ही बस, आया जाया करता है

सर झुकाया करता हूँ, तो ख्यालों में आता है
सर उठाया तो आईने सा, मुस्कराया करता है

मैं छोड़ देता हूँ, ये दीवारो-दर बे-तरतीब जब
घर मेरा कौन भला जागकर सजाया करता है

बड़ा दिलदार बेदिल है यारों मातम नहीं करता
मेरे वीराने को भी, अश्कों से महकाया करता है

एक रोज सोचता हूँ, छुप छुप के ये सब देख लूँ
कौन है जो ये चूडियाँ घर में खनकाया करता है

मेरी मायूसियों का बड़ा ख्याल रखता है "राज"
शाम ढलती है तो खुद चराग जलाया करता है