हिज्र है मुक्क़दर तो वस्ल की सदा ना लिखना
जो यूँ चराग बख्शा है तूने, तो हवा ना लिखना
कब करी ख्वाहिश मैंने किसी खजाने की यहाँ
मेरी किस्मत तू कुछ उसके सिवा ना लिखना
मुझे हासिल है दर्द में भी इक लज्जत अब तो
ऐ खुदा अब कोई खुशियों की सबा ना लिखना
मिल भी जाए गर मेरी पीठ पे यूँ खंज़र उसका
के वो है मासूम, उसकी कोई खता ना लिखना
हम अपनी आँखों को ही जला के रौशनी करेंगे
मेरी खातिर महर-ओ-माह, दुआ ना लिखना
निखर आएगा रंग सफहों पे अंदाजे-सुखन का
नाम उसका ही लिखना, कुछ नया ना लिखना
यूँ तो ग़ज़ल में मैंने अपने ख्याल उतारे रखे थे
कुछ पता ना था क्या लिखना क्या ना लिखना
मज़बूरी-ए-हालात की शायद वो रही थी मारी
कभी तुम "राज़" उसको यूँ बेवफ़ा ना लिखना