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रविवार, अक्तूबर 11, 2009

काफिरों के हक में भी, एक दुआ रखना



काफिरों के हक में भी, एक दुआ रखना
तुम जब भी अपने जेहन में खुदा रखना

तेरा अक्स जो तुझसे रूबरू रखा करे यूँ
मेरे जैसा ही तू कोई फिर आईना रखना

मौसम कितना भी गमजदा क्यूँ ना मिले
बहारें लौटेंगी यही कायम हौसला रखना

शब् भर सहर के लिए मुन्तजिर ना होना
अपने पहलू में छुपा के, बादे-सबा रखना

सफ़र लम्बा बहुत है मंजिल आसाँ नहीं है
हो सके तो साथ अपने एक कारवाँ रखना

कौन सितम भी किसी पे, ताउम्र करता है
उसकी जफ़ाओं पे भी तू वफ़ा-वफ़ा रखना

बड़ा मासूम है जमाने की रस्में नहीं जाने
याद कभी तू ना उसकी कोई खता रखना

ये इश्क का मसला है, बहुत नाजुक सा है
मिलने जुलने में तुम जरा फ़ासला रखना

कत्ल करे भी तो उस से सवाल ना करना
नाम उसकी ये भी "राज" एक अदा रखना