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रविवार, जून 20, 2010

खूबसूरत ग़ज़ल हो जाए....


तुम्हारी याद का गर एक भी पल हो जाए 
समझो फिर तो खूबसूरत ग़ज़ल हो जाए 

जो इश्क का सामान अपने घर रखता हो 
सौदा बेवफाई का हो तो वो पागल हो जाए 

तुम भी खामोश और हम भी रहे चुप जो 
फिर कहो कैसे कोई मसला हल हो जाए 

बहुत हुए जीने को मुझे कुछ लम्हे पुराने 
सोचता हूँ के क्यूँ कोई रद्दो-बदल हो जाए 

माना के हूँ काफिर पर डरता भी बहुत हूँ 
मुलाकात ना खुदा से रोजे-अजल हो जाए