पहले ज़ख्मों पर थोड़ा नमक लगा दीजिये
फिर जी भरकर आप मुझको दुआ दीजिये
और कौन यहाँ काफिर है कौन है मुसलमाँ
कभी मिलें गर जो ये मुझे भी बता दीजिये
मेरी तासीर आब जैसी है पता चल जाएगा
बस इक बार खुद को मुझमे मिला दीजिये
कभी जो आँखों में मेरी उसके ख्वाब मिले
जो चोर की हो वो ही मुझको सज़ा दीजिये
जिसे लग गया हो आजार-ए-इश्क यहाँ पे
उसे फिर क्या दुआ दीजिये के दवा दीजिये
मकता भी संभल जाएगा, खूब शेर जमेंगे
फ़िक्र बहर की आप,ग़ज़ल से हटा दीजिये