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शनिवार, अप्रैल 23, 2011

माँ की दुआओं को अपने सर रख लेना



माँ की दुआओं को अपने सर रख लेना 
परदेस जाना तो आँख में घर रख लेना 

कहाँ हासिल है शहर में ये सोंधी खुशबू
साथ गली की खाक मुश्त भर रख लेना 

पोंछ लेना आँखों को अपनी मगर तुम 
कुछ आईनों को भी साफ़ कर रख लेना 

जिंदगी में कुछ काम नहीं आया करता 
हौसलों से भरी कोई रहगुजर रख लेना 

बस छाँव ही नहीं, वो देता है बहुत कुछ 
आँगन में कोई बूढ़ा सा शजर रख लेना 

चाहना टूटकर के जिसे भी चाहना तुम
फासला दरमियाँ थोड़ा मगर रख लेना 

मानिंद-ए-चराग जलना ऊम्र भर को यूँ 
पर कुछ हवाओं का भी तो डर रख लेना 

उसका जिक्र भी हुआ तो महकेगी बहुत 
फिर चाहे ग़ज़ल 'राज़' बे-बहर रख लेना

रविवार, अप्रैल 17, 2011

हर शख्स अब तन्हा दिखाई देता है



देखिये जिसको भी वो रुसवा दिखाई देता है 
हाँ मुझे हर शख्स अब तन्हा दिखाई देता है 

खुबसूरत अब कभी मौसम नहीं होते कहीं 
हद तलक नज़रों में बस सहरा दिखाई देता है 

अब्र की वहशत में वो चाँद जबसे आ गया 
आसमाँ तबसे बड़ा ये गहरा दिखाई देता है 

नासमझ हूँ मैं यहाँ कैसे यकीं कर लूँ कहो
हर नए चेहरे पे इक चेहरा दिखाई देता है  

हिज्र में यूँ ही कहीं जो याद उसकी चल पड़े 
खुश्क आँखों में मेरी दरिया दिखाई देता है 

लुट चला है 'राज़' वो तो इश्क के ही नाम पे 
लोग कहते हैं उसे के पगला दिखाई देता है 

सोमवार, अप्रैल 11, 2011

इक गुनाह सा कर गया कोई



के इक गुनाह सा कर गया कोई
इस दिल से जो उतर गया कोई

उसे बस जाने की जिद पड़ी थी
क्या पता कहीं पे मर गया कोई

हवा ये बहकी बहकी फिरे देखो
शायद यहाँ से गुजर गया कोई

चांदनी शब् भर रोती रही यहाँ
इलज़ाम उसके सर गया कोई

खुद को ढूंढ़ते ये कहाँ आ गया
लौट कर जो ना घर गया कोई

उस गली के चक्कर नहीं लगते
शायद "राज़" सुधर गया कोई

रविवार, अप्रैल 03, 2011

बात निकलेगी.......



मेरी इन आँखों के समंदर की बात निकलेगी 
तब किसी संगदिल पत्थर की बात निकलेगी 

जज्ब-ए-कुर्बानी का जिक्र होगा कहीं पर जब 
देखना यारों के मेरे ही सर की बात निकलेगी 

मौसम-ए-सेहरा में होगा सब आलम ये कैसा 
ना समर, ना किसी शज़र की बात निकलेगी 

मुद्दत से हैं वीरान पड़ी इस शहर की बस्तियाँ 
किन अल्फाजों में मेरे घर की बात निकलेगी 

जब भी छिड़ेगा चर्चा कहीं दोस्तों के नाम का
पीठ मेरी तो उनके खंजर की बात निकलेगी

मेरी वफायें जाविदाँ और तेरी ज़फायें कमाल 
कुछ यूँ अब दोनों के हुनर की बात निकलेगी

और ग़ज़लों में अब नया हम क्या कहें "राज़" 
दिल, धड़कन, रूह, जिगर की बात निकलेगी