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गुरुवार, सितंबर 08, 2011

मेरी तरह वो शख्स भी तन्हा बहुत है



ये बात और है के आजकल हँसता बहुत है 
पर मेरी तरह वो शख्स भी तन्हा बहुत है 

उसकी इबादत करूँ तो क्यूँ हैराँ है ज़माना
उसका चेहरा जो खुदा से मिलता बहुत है 

उसके इंतज़ार में तो यूँ सदियाँ गुजार देंगे 
उसकी याद का हमे इक-2 लम्हा बहुत है 

मजबूरे-हालात था जो वफ़ा न कर सका 
मेरी निगाह में मगर वो अच्छा बहुत है 

"तुम मेरी जिन्दगी से कहीं जा नहीं रहे"
उसका मुझसे इतना बस कहना बहुत है 

ग़ज़ल के लिए 'राज़' नए उन्वाँ क्या लायें 
बस इक उसका नाम ही लिखना बहुत है