ये बात और है के आजकल हँसता बहुत है
पर मेरी तरह वो शख्स भी तन्हा बहुत है
उसकी इबादत करूँ तो क्यूँ हैराँ है ज़माना
उसका चेहरा जो खुदा से मिलता बहुत है
उसके इंतज़ार में तो यूँ सदियाँ गुजार देंगे
उसकी याद का हमे इक-2 लम्हा बहुत है
मजबूरे-हालात था जो वफ़ा न कर सका
मेरी निगाह में मगर वो अच्छा बहुत है
"तुम मेरी जिन्दगी से कहीं जा नहीं रहे"
उसका मुझसे इतना बस कहना बहुत है
ग़ज़ल के लिए 'राज़' नए उन्वाँ क्या लायें
बस इक उसका नाम ही लिखना बहुत है