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बुधवार, जुलाई 21, 2010

मेरा दिल ख्याली है....


मेरी सोच है संजीदा, मेरा दिल ख्याली है 
बेतरतीब सी  मैंने एक दुनिया बना ली है 

तुम आ जाओ और इनको छू लो होठों से 
मेरी ग़ज़ल तुम्हारे बगैर खाली--खाली है 

आँखों में समंदर पर तश्नगी बुझती नहीं 
किसने मेरी जानिब ये बद्दुआ उछाली है 

ये आईना भी कमबख्त वफ़ा नहीं करता 
इसने खुद में तो उनकी सूरत बसा ली है 

उनके दीदार को ये चला आता है शाम से 
चाँद भी अब हो गया, मेरे जैसा बवाली है 

इस बिस्तर में कमबख्त मुझे चुभा क्या 
उनकी नाक का नाथ या कान की बाली है 

और कल से हो रही जो बारिश थमी नहीं 
बादल फूटा है या उसने जुल्फ संभाली है 

नहीं देखते इस डर से सूरते-खूबसूरत को 
"राज" तेरी नजर बहुत ही काली-काली है 

मेरी शामो--सहर आरजू


मेरी शामो--सहर आरजू 
राहों में हमसफ़र आरजू 

जली थी कल भी तो यहाँ 
चराग सी रात भर आरजू 

जब हो जख्म यादों से तो 
बन रहती चारागर आरजू 

सेहरा की धूप में मिलती 
छाँव का हो शजर आरजू 

सुकून देती है, तन्हाई में 
लगे प्यारा सा घर आरजू 

सम्भाल आँखों में रखना 
जाए ना यूँ बिखर आरजू 

अहसासों के फूल जैसी है 
ख्वाबों से भी तर आरजू 

ग़ज़ल तो उससे ही रौशन 
"राज" की है बहर आरजू 

आँखों से जब कई रतजगे निकले


आँखों से जब कई रतजगे निकले 
तब जाके वस्ल के हसीं गुल खिले 

हया की दीवार फिर भी बनी रही 
यूँ तो हमसे बहुत खुल-खुल मिले 

मेरे शानो पे रख सर रोये क्या वो 
गुम हो गए फिर सब शिकवे गिले 

रूहों तक दोनों की साँसे उतर गयीं
रात भर हुए थे बस यही सिलसिले 

बारिशों में भीगे बदन रहे थे दोनों 
अरमान दिलों में जाने कितने पले 

सहर कनखियों से जब आई नजर 
ना हम छोड़ें ना छुड़ाकर के वो चले

कुछ यादें घर में रहने दे


कुछ यादें घर में रहने दे 
तस्वीरें नजर में रहने दे 

फलक ऊँचा हो,होता रहे 
दम-ख़म पर में रहने दे 

आँगन में चराग जला   
शाम,शजर में रहने दे 

आँखें सिर्फ, मंजिलों पर  
गर्द को सफ़र में रहने दे  


चमक उठे हर एक जर्रा 
रौशनी हुनर में रहने दे 

जख्म उनके हँस के सह 
दर्द ये जिगर में रहने दे 

ऊब जाएगा, लौटेगा गाँव 
चार दिन शहर में रहने दे 

वस्ल, लौटने की उम्मीद 
मौसमे-हिजर में रहने दे