मेरी सोच है संजीदा, मेरा दिल ख्याली है
बेतरतीब सी मैंने एक दुनिया बना ली है
तुम आ जाओ और इनको छू लो होठों से
मेरी ग़ज़ल तुम्हारे बगैर खाली--खाली है
आँखों में समंदर पर तश्नगी बुझती नहीं
किसने मेरी जानिब ये बद्दुआ उछाली है
ये आईना भी कमबख्त वफ़ा नहीं करता
इसने खुद में तो उनकी सूरत बसा ली है
उनके दीदार को ये चला आता है शाम से
चाँद भी अब हो गया, मेरे जैसा बवाली है
इस बिस्तर में कमबख्त मुझे चुभा क्या
उनकी नाक का नाथ या कान की बाली है
और कल से हो रही जो बारिश थमी नहीं
बादल फूटा है या उसने जुल्फ संभाली है
नहीं देखते इस डर से सूरते-खूबसूरत को
"राज" तेरी नजर बहुत ही काली-काली है
एक से बढ़ कर एक ग़ज़ल लिखते हैं....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद एक बढ़िया गजल पढ़ने को मिली!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी......शुक्रिया...सब आपकी दुआएं हैं..
जवाब देंहटाएंरूपचंद्र भाई साब.........आभार आपका जो आपको पसन्द आई..
इस बिस्तर से कम्बख़्त ....
जवाब देंहटाएंक्या कमाल का शेर है .. ग़ज़ब कर दिया है आपने ... लाजवाब ग़ज़ल है ...
bahoot hi samvednao se bhari hai ye gazal .KK bhai apki ki rachna charchamanch ke madhyam se padi.apki gazlo ne dya dhamal macha rakha hai. sari gazle bahoot hi achchhi
जवाब देंहटाएंbahut achhi lgi ye gazal
जवाब देंहटाएंदिगंबर भाई....शुक्रिया..कुछ रूमानी मूड में कहा था वो शेर...
जवाब देंहटाएंउपेन्द्र भाई......बहुत बहुत शुक्रिया..यहाँ तक आने के लिए...
रचना जी..........आभार ..वक़्त दिया जो आपने..
खुश रहिये आप सब....