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बुधवार, जुलाई 21, 2010

मेरी शामो--सहर आरजू


मेरी शामो--सहर आरजू 
राहों में हमसफ़र आरजू 

जली थी कल भी तो यहाँ 
चराग सी रात भर आरजू 

जब हो जख्म यादों से तो 
बन रहती चारागर आरजू 

सेहरा की धूप में मिलती 
छाँव का हो शजर आरजू 

सुकून देती है, तन्हाई में 
लगे प्यारा सा घर आरजू 

सम्भाल आँखों में रखना 
जाए ना यूँ बिखर आरजू 

अहसासों के फूल जैसी है 
ख्वाबों से भी तर आरजू 

ग़ज़ल तो उससे ही रौशन 
"राज" की है बहर आरजू 

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