बेचैन रहेंगे कुछ, कुछ घबराए फिरेंगे
यूँ इश्क से जब भी वो उकताए फिरेंगे
काज़ल से करेंगे वो शामो के करिश्मे
चाँद को चेहरे से फिर चमकाए फिरेंगे
सखियाँ जो छेड़ देंगी कभी नाम से मेरे
छुप जायेंगे कहीं पे और शरमाये फिरेंगे
मौसम की रंगत होगी होठों से ही उनके
पैरहन की खुशबू से सब महकाए फिरेंगे
रखेंगे नाम-ए-'आरज़ू' ''राज़'' जो उनका
सच है के हर्फ़-ए-ग़ज़ल बल खाए फिरेंगे