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बुधवार, अप्रैल 28, 2010

बड़ी हसरत रही है खुद को आजमाने की


बड़ी हसरत रही है खुद को आजमाने की 
मोहब्बत करके, इक और चोट खाने की 

गर उन आँखों से जो सागर पिए बैठा हो 
तशनगी फिर कहाँ मिटती है दीवाने की 

होश में आये जब और दर्द बढ़ गया थोडा 
याद आई हमे उस जाम-ओ-मयखाने की 

कहर-ए-बर्क जब हुआ आशियाने पे मेरे 
नजर भर आयी अदा तेरी मुस्कराने की 

शब् से सहर, सहर से शब्, हो जाए जब 
खबर कर देना, उनके आने की जाने की 

शमा जल-२ के खुद को रंगीं क्या कर दे 
तवज्जो फिर नहीं होती इस परवाने की 

शिकवे गिले हैं उनसे फिर भी नहीं कहते 
खामोश करती है अदा उनके शरमाने की

बेबस होके बेबसी से मिले


बेबस होके बेबसी से मिले
जब कभी जिंदगी से मिले

आईने की शक्ल देखी जब
हम एक अजनबी से मिले

बस हमी से अदावत रखी
वैसे वो हर किसी से मिले

बहुत से शिकवे किये होंगे
अँधेरे जब रौशनी से मिले

बरसे बगैर जो घटा गयी
शजर कहाँ ख़ुशी से मिले 

खुदा को भी सुकूँ आ जाए
आदमी जो आदमी से मिले

वाइज ना ऐसी हैरत कर
काफिर जो बंदगी से मिले