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रविवार, अप्रैल 26, 2009

याद उसकी




सुबह शाम आये है याद उसकी
मेरी रूह को सताए है याद उसकी...

मैं भूल भी जाऊं गर उसे कभी
खुद ही खुद बुलाये है याद उसकी...

फूलों का खिलना है चेहरा उसका
और खुशबू बिखराए है याद उसकी...

काफिर भी बंदगी खुदा की करे
जब दुआ हो जाए है याद उसकी...

मैं चाह के भी आँखें नम ना करुँ
हर घड़ी को मुस्कराए है याद उसकी...

ख्वाबो में फिर से आने जाने लगी है वो




ख्वाबो में फिर से आने जाने लगी है वो 
देख के मुझको यूँ ही मुस्कराने लगी है वो 

कौन कहता है की तवज्जो नहीं दिया करती 
नजरे चार हों तो सर झुकाने लगी है वो 

सखियाँ मेरे नाम से जब छेड़ती है उसको 
दांतों से दबा उँगलियाँ शरमाने लगी है वो 

चुपके-2 रातो को याद करके भरती है आहें 
अफसानो में नाम मेरा ही गुनगुनाने लगी है वो 

दोनों जहाँ में उस जैसी कोई वफ़ा नहीं होगी 
"राज" की कम निगाही को भी अदा बताने लगी है वो

सहर होती नहीं


शब् जाती नहीं सहर होती नहीं 
तेरे बगैर मेरी गुजर होती नहीं 

तेरी सूरत दिल में यूँ उतर गयी 
किसी चेहरे पे अब नजर होती नहीं 

सांस तो लिया करता हूँ जीने को 
पर धड़कन की कहीं बसर होती नहीं 

कैसे भूल जाऊ तुझे सूझता नहीं "राज"
याद करने से फुर्सत किसी पहर होती नहीं.