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शुक्रवार, अक्तूबर 29, 2010

क्या मांगू खुदा से जिंदगी के लिए


मिल जाए बस सुकून दो घडी के लिए 
और क्या मांगू खुदा से जिंदगी के लिए 

क्यूँ मुझे वो काफिर का नाम दे देती है 
उसको ही दिल में रखा है बंदगी के लिए 

वो नादान क्या समझे है मोल इसका 
उसे दिल चाहिए बस दिल्लगी के लिए 

दश्तों का सफ़र लिखा है नसीब में गर 
मंजिल नहीं होती उस आदमी के लिए 

सबके लबों पे जिसने तबस्सुम सजाए 
आता नहीं है कोई उसकी ख़ुशी के लिए 

" राज़ " क्या जाया करें मयकदों में अब 
यहाँ अश्क ही काफी हैं मयकशी के लिए