मिल जाए बस सुकून दो घडी के लिए
और क्या मांगू खुदा से जिंदगी के लिए
क्यूँ मुझे वो काफिर का नाम दे देती है
उसको ही दिल में रखा है बंदगी के लिए
वो नादान क्या समझे है मोल इसका
उसे दिल चाहिए बस दिल्लगी के लिए
दश्तों का सफ़र लिखा है नसीब में गर
मंजिल नहीं होती उस आदमी के लिए
सबके लबों पे जिसने तबस्सुम सजाए
आता नहीं है कोई उसकी ख़ुशी के लिए
" राज़ " क्या जाया करें मयकदों में अब
यहाँ अश्क ही काफी हैं मयकशी के लिए