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रविवार, अप्रैल 28, 2013

हम नासमझों के हवाले जायेंगे




अँधेरे जायेंगे, उजाले जायेंगे
इक रोज सब निकाले जायेंगे

सच का जनाज़ा निकलेगा औ'
झूठ के परचम संभाले जायेंगे

जब ये जिस्म बूढा हो जाएगा
तो फिर कैसे पेट पाले जायेंगे

दिन में बुराई शराब की करेंगे
रात में गटके वो प्याले जायेंगे

यहाँ भाईचारे की बात करेंगे वो
उधर हमारे सिर उछाले जायेंगे

दिल्ली में सहमी हुई आबरुयें
कौन जाने कब उठा ले जायेंगे

समझदारों के पल्ले ना पड़े हम
हम नासमझों के हवाले जायेंगे

लफ़्ज़ों की भूख जब बढ़ेगी "राज़"
तो कुछ अशआर उबाले जायेंगे

सोमवार, अप्रैल 22, 2013

इस इश्क ने देखो क्या-क्या दिया मुझे



आँखों में अश्क, दिल रुसवा दिया मुझे 
इस इश्क ने देखो क्या-क्या दिया मुझे 

अब दिन रात बस उसे ही सोचते रहिये 
उस ने बिछड़ के काम आला दिल मुझे 

मैं जितना उबरता हूँ उतना ही डूबता हूँ 
कैसा उसने यादों का दरिया दिया मुझे 

किस्मत पे हर दफा ऐतबार किया था  
हर मर्तबा उम्मीद ने धोखा दिया मुझे 

गर्दिशे--वक़्त में सब अपने बिछड़ गए 
शाखों के सूखे पत्ते सा ठुकरा दिया मुझे 

अपनी ही करे है ये, ना सुने "राज" की 
कैसा खुदाया तूने दिल बहरा दिया मुझे