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मंगलवार, अगस्त 21, 2012

नींद रात रानी हो गयी



हिज्र की कलियाँ वो चटखी, नींद रात रानी हो गयी 
यादों का बरसा अब्र और चश्मे-रुत सुहानी हो गयी 

टूटे-बिखरे ख्वाब और किताबों में मुरझाये गुलाब 
मेरे हक में ये मुहब्बत की अच्छी निशानी हो गयी 

हमने जो उनको कही थी, वो बात तो कुछ और थी 
उन तलक पहुंची तो कुछ की कुछ कहानी हो गयी

चारा-ए-दिल उनका हकीम करते भी तो क्या भला  
मर्ज-ए-इश्क की जिन जिन पर मेहरबानी हो गयी

चूम कर बाद-ए-सबा को जब आफताब चल दिया 
शर्म से ये खाक ज़मीं की फिर पानी पानी हो गयी 

यूँ बंदिशें मगर सोलहवे में अच्छी नहीं लगती उसे 
पर माँ उसकी जानती है के लड़की सयानी हो गयी 

उसके ख्याल के बाद हमे ना ख्याल आया किसी का 
यूँ लगता है जैसे सारी दुनिया से बदगुमानी हो गयी 

मीर-ग़ालिब के मुकाबिल है इस जहाँ में ठहरा कौन 
उनकी तो ग़ज़लों-नज्मों में बसर जिंदगानी हो गयी  

नये कुछ और भी तो मसले उठाओ "राज़" ग़ज़ल में 
के वो बात "आरज़ू" की अब कितनी पुरानी हो गयी 

मंगलवार, अगस्त 07, 2012




मैं तो छुपा लेता हूँ, पर ये बता देता है
मेरा चेहरा मेरे हालात का पता देता है 

वो अहसान फिर अहसान नहीं रहता  
कोई कर के जब सब को सुना देता है  

जब कभी भी रुतबे का गुमाँ आता है 
मेरा माजी मुझे आईना दिखा देता है 

कौन भला उम्र भर साथ देता है यहाँ 
सूख जाएँ तो पेड़ भी पत्ते गिरा देता है 

इन्सां होता है बहरा जहाँ काम ना हो 
जहाँ हो काम वहाँ, कान लगा देता है 

ग़ज़ल की दास्तान होती है खूबसूरत 
ढंग से कोई जो उन्वान निभा देता है 

किस्मत में फतह है तो हो कर रहेगी 
क्या हुआ जो कोई हमे बद्दुआ देता है

यहाँ तो इक आरज़ू भी पूरी नहीं होती  
जाने लोगों को क्या-क्या खुदा देता है   

तुम भी इक अजीब ही शख्स हो "राज़" 
याद उसे रखोगे, जो तुम्हे भुला देता है