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शुक्रवार, जनवरी 01, 2010

तेरा इश्क है पागलपन है, या ये मेरी आदत है


जाने कैसा दीवाना हूँ मैं, जाने कैसी वहशत है
तेरा इश्क है पागलपन है, या ये मेरी आदत है

गुल में तेरा चेहरा देखूं, झील ये आँखें लगती हैं
हर शै में बस तू ही तू, खुदा की कैसी कुदरत है

किस्से लैला मंजनू के मुझको क्यूँ समझाते हो
मेरा इश्क जुदा उनसे जिस से मेरी मुहब्बत है

उसकी खातिर कुछ भी तो अब मैं कर जाऊँगा
शमा के परवाने सी अब हो गयी मेरी हालत है

रात रात भर आँखों में नींद ना आया करती है
उनके ही ये जलवे हैं, ये सब उसकी इनायत है

तनहा-2 बातें करना मुझको अच्छा लगता है
खुद ही खुद के दिल से जाने कैसी गफलत है

रोते रोते हँसता हूँ और हँसते हँसते रो देता हूँ
कोई कहता वहशी हूँ तो कोई कहता शिद्दत है

जाने कैसा दीवाना हूँ मैं, जाने कैसी वहशत है
तेरा इश्क है पागलपन है, या ये मेरी आदत है