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शनिवार, जून 26, 2010

लहजे में खुद्दारी रख


दूर सब दुनियादारी रख 
बस लहजे में खुद्दारी रख 

आसमान से डरना क्या 
बस उड़ने की तैयारी रख 

जिसकी आँखों से पी ले तू 
फिर उससे ना गद्दारी रख 

गमे हिज्र को मान के नेमत 
फुरकत में जीना जारी रख 

जफा मिले तो वफ़ा निभा 
सोच ये अपनी भारी रख 

सफे-दोस्तां साथ ना दे तो 
अदू से ही दिलदारी रख 

जो प्रीत की तुझसे रीत निभाए 
उन पांवों में जन्नत सारी रख 

हद-ए-दर्द जब बढ़ जाए "राज" 
तैयार ग़ज़ल इक प्यारी रख 

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सफे-दोस्तां----मित्र मंडली,

अदू----दुश्मन