तो आँखों में अश्क उतर आयेंगे उस रोज़
तेरी कोई ग़ज़ल लेकर आयेंगे जिस रोज़
हम उन्हें भी लफ़्ज़ों के पैकर में ढाल देंगे
तेरी याद के नक्श उभर आयेंगे जिस रोज़
मेरे दोस्तों फिर बद्दुआ देना तुम मुझको
इस दिल के ज़ख्म भर आयेंगे जिस रोज़
फिर रौशन होंगे यहाँ पे हौसलों के चराग
रकीब लेके हवाएं इधर आयेंगे जिस रोज़
और माँ की दुआएं उसे याद आएँगी बहुत
छोड़ कर के गाँव, शहर आयेंगे जिस रोज़
तब ''राज़'' की भी ईद-ओ-दिवाली मनेगी
भुलाकर रंजिशें वो घर आयेंगे जिस रोज़