जीत की बातें हैं, ना हैं हार की बातें
इश्क में हैं तो दर्द बेशुमार की बातें
वो मौसमों के हसीं निखार की बातें
रह गयीं हैं अब कहाँ बहार की बातें
वीराने घर के और ये दीवार-ओ-दर
आज भी करते हैं इंतज़ार की बातें
अपना बना के जबसे छोड़ गया वो
लगती हैं बेजा सी ऐतबार की बातें
शाम तन्हाई जो उसकी याद चले है
आँखें करती हैं फिर फुहार की बातें
ख्यालों की वादी का 'राज़' ग़ज़ल में
चनाब की बातें कुछ चनार की बातें