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रविवार, मई 22, 2011

उसे इंकार हो जितना वो करता रहे



के उसे इंकार हो जितना वो करता रहे 
दिल है के दिन रात उसपे ही मरता रहे 

मेरा इश्क तो है, मानिंद-ए-खुशबू कोई 
समेटूं जितना ये उतना ही बिखरता रहे 

मुझे पता है उसके दिल में है क्या छुपा 
सामने गर मुकरता है तो, मुकरता रहे 

रोज़ आयें उसकी हसरत ले के ये सितारे 
मुआ चाँद है के चौदहवीं तक संवरता रहे 

"राज़" लिख दें नाम ग़ज़ल में "आरज़ू"
सच है के हर लफ्ज़ फिर निखरता रहे