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सोमवार, अप्रैल 27, 2009

बहुत उदास हूँ



बहुत उदास हूँ एक सदा दे कोई
तनहा कब तक रहूँ उससे मिला दे कोई ...

शब् की तन्हाईयां बिखरी बहुत हैं
सहर का उसको भी पता दे कोई ...

किसी के वादों का ऐतबार क्या करुँ
आके पहले वादे निभा दे कोई ...

मेरे जख्मो की लम्बी दास्ताँ है
कुछ हो इलाज मर्ज की दवा दे कोई ...

इक चिंगारी भी क़यामत ला सकती है
आग के शोलो को न हवा दे कोई ...

कौन देखेगा



अबके इन हवाओं का सफ़र कौन देखेगा 
हम ही ना होंगे तो ये घर कौन देखेगा...

पतझर आएगा तो गुल भी ना होंगे 
तनहा तनहा सा ये शजर कौन देखेगा...

जहाँ तक है नजर जमीं सेहरा हुई है 
घटा बरसेगी भी तो असर कौन देखेगा...

परिंदे छोड़ कर बस्तियां दूर जाने लगे 
शब् बीत भी जाए तो सहर कौन देखेगा...

जिसके दम से अब तक आबाद थी गलियां 
"राज" चला गया तो शहर कौन देखेगा...