
बहुत उदास हूँ एक सदा दे कोई
तनहा कब तक रहूँ उससे मिला दे कोई ...
शब् की तन्हाईयां बिखरी बहुत हैं
सहर का उसको भी पता दे कोई ...
किसी के वादों का ऐतबार क्या करुँ
आके पहले वादे निभा दे कोई ...
मेरे जख्मो की लम्बी दास्ताँ है
कुछ हो इलाज मर्ज की दवा दे कोई ...
इक चिंगारी भी क़यामत ला सकती है
आग के शोलो को न हवा दे कोई ...
बहुत खूब.......अच्छी रचना.....
जवाब देंहटाएंकल रात पुरवाई चली थी शायद
जवाब देंहटाएंपुराना हर जख्म उभर गया होगा....
बहुत लाजवाब ग़ज़ल बनी है................हकीकत से जुड़े शेर हैं
गार्गी जी और दिगंबर जी....शुक्रिया वक़्त देने के लिए
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