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सोमवार, अप्रैल 27, 2009

बहुत उदास हूँ



बहुत उदास हूँ एक सदा दे कोई
तनहा कब तक रहूँ उससे मिला दे कोई ...

शब् की तन्हाईयां बिखरी बहुत हैं
सहर का उसको भी पता दे कोई ...

किसी के वादों का ऐतबार क्या करुँ
आके पहले वादे निभा दे कोई ...

मेरे जख्मो की लम्बी दास्ताँ है
कुछ हो इलाज मर्ज की दवा दे कोई ...

इक चिंगारी भी क़यामत ला सकती है
आग के शोलो को न हवा दे कोई ...

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब.......अच्छी रचना.....

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  2. कल रात पुरवाई चली थी शायद
    पुराना हर जख्म उभर गया होगा....

    बहुत लाजवाब ग़ज़ल बनी है................हकीकत से जुड़े शेर हैं

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  3. गार्गी जी और दिगंबर जी....शुक्रिया वक़्त देने के लिए

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