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शुक्रवार, मई 29, 2009

मैं सहर हूँ




उसकी खुशबू से तरबतर हूँ
एक महकता हुआ शजर हूँ

उसके आरिज पे खिलता हूँ
नम-शबनम सा रात भर हूँ

सारे रिश्तों को पहचानता हूँ
मैं मोहब्बत से आबाद घर हूँ

हालात कुछ भी हो जीता हूँ
रखता फौलाद का जिगर हूँ

एक रोज वो पढ़ेगी देखना
सुनी सुनाई ताजा खबर हूँ

वो शब् मुझसे अब डरती है
मिटा दूंगा उसको मैं सहर हूँ.

बुधवार, मई 27, 2009

जिद कर लेती




काश तुझे अपना बनाने की जिद कर लेती
मैं फिर से यूँ मुस्कराने की जिद कर लेती

तुझे एहसास हो गया होता मेरे जज्ब पे
अपनी खाख से तुझे महकाने की जिद कर लेती

तोड़ देती सारे जहाँ की रस्मे तेरी खातिर
सरे-आम सीने से लगाने की जिद कर लेती

मेरी शिद्दत का ये भी इम्तिहान होता गर
क़यामत तक वादा निभाने की जिद कर लेती

रविवार, मई 10, 2009

तेरा इन्तजार शब् भर रहा



तेरा इन्तजार शब् भर रहा
तू ना जाने कहाँ उलझा रहा

मैं उसी मोड़ पे बैठी रही
तेरी राहों से जो मुड़ता रहा

यूँ तो मैंने खुद को संभाला बहुत
पर आँचल हवा से उड़ता रहा

सहर की जब से आहट हुई
अश्कों से नाता मेरा जुड़ता रहा

रविवार, मई 03, 2009

मेरे दिल की जिद .....




वो मुझसे जख्म खाने की जिद करता है 
फिर भी हर हाल मुस्कराने की जिद करता है 

लेता है कुछ यूँ मेरे हौसलों का इम्तेहान 
के हर चोट पे नमक लगाने की जिद करता है 

ख्वाहिश खिजाओ से रखता है कुछ यूँ 
तनहा शजर पे गुल खिलाने की जिद करता है 

जब के जानता है वो संग है न पिघलेगा 
फिर भी इक बार और आजमाने की जिद करता है 

गर कभी ख्वाब में वो आ जाए भूल से 
नींद को आँख से न जाने की जिद करता है 

संभल के चलते हैं जब मयकदों से भी 
न जाने क्यूँ "राज" लड़खडाने की जिद करता है