आज फिर उसी के नाम से बिखर जाऊँगा
गर मयकदे न गया तो शायद मर जाऊँगा
ना कर फिकर मेरी डूबती नब्जो की अब
दरिया हूँ ठहरा जो कहीं तो उतर जाऊँगा
मुसाफिर हूँ इस बेरंग सी शब् का मैं तो
जैसे गुजरेगी शाम मैं भी गुजर जाऊँगा
तुम गैर की महफ़िल में रंगीनियाँ होना
मैं जुल्मतो में खुद ही ता-सहर जाऊँगा
शउर नहीं मुझे अपनी सोचो पे रह गया
जिधर ले जाए मंजिल मैं उधर जाऊँगा
मेरे अफ़साने मेरे बाद अंजुमन में होंगे
जाते-२ गजलों में दे ऐसा असर जाऊँगा