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मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

इन तन्हा आँखों में इक इन्तजार रहता है



इन तन्हा आँखों में इक इन्तजार रहता है
उसके लिए दिल अब भी बेक़रार रहता है 

और हर आहट पे झरोखे तक आ जाती हूँ 
वो आएगा ये गुमाँ मुझे बार-बार रहता है 

यूँ तो सबसे हंस बोल लिया करती हूँ मैं 
दिल में मगर जाने कैसा आजार रहता है 

तन्हाईयाँ यूँ मेरी अब चुभती तो बहुत हैं 
पर उम्मीदों का कायम गुलजार रहता है 

"राज" दिखने में संग पर मासूम भी तो है 
क्यूँ कहते हो उसमे के गुनहगार रहता है