इन तन्हा आँखों में इक इन्तजार रहता है
उसके लिए दिल अब भी बेक़रार रहता है
और हर आहट पे झरोखे तक आ जाती हूँ
वो आएगा ये गुमाँ मुझे बार-बार रहता है
यूँ तो सबसे हंस बोल लिया करती हूँ मैं
दिल में मगर जाने कैसा आजार रहता है
तन्हाईयाँ यूँ मेरी अब चुभती तो बहुत हैं
पर उम्मीदों का कायम गुलजार रहता है
"राज" दिखने में संग पर मासूम भी तो है
क्यूँ कहते हो उसमे के गुनहगार रहता है